इस आर्टिकल में हम आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का जीवन परिचय पढेंगे। इससे पहले हम सूरदास, तुलसीदास,रसखान और डॉ राजेंद्र प्रसाद का जीवन परिचय पढ़ चुके हैं।
आप इस आर्टिकल में पढेंगे -
आचार्य रामचंद्र शुक्ल – संक्षिप्त परिचय
[table “8” not found /]आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का जीवन परिचय | Acharya Ramchandra Shukla
हिन्दी के समीक्षक एवं युग-प्रवर्तक निबंधकार आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का जन्म सन् 1884 ई0 में बस्ती जिले के अगोना नामक ग्राम के एक सम्भ्रान्त परिवार में हुआ था। इनके पिता चन्द्रबली शुक्ल मिर्जापुर में कानूनगो थे। इनकी माता अत्यन्त विदुषी और धार्मिक थीं। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा-दीक्षा अपने पिता के पास जिले की राठ तहसील में हुई। हिन्दी, अंग्रेज़ी, संस्कृत, बांग्ला, उर्दू, फारसी आदि भाषाओं का ज्ञान इन्होंने स्वाध्याय से प्राप्त किया।
इण्टरमीडिएट में आते ही इनकी पढ़ाई छूट गई। ये सरकारी नौकरी करने लगे, किन्तु स्वाभिमान के कारण यह नौकरी छोड़कर मिर्जापुर के मिशन स्कूल में चित्रकला अध्यापक हो गए। अध्यापन का कार्य करते हुए इन्होंने अनेक कहानी, कविता, निबन्ध, नाटक आदि की रचना की। इनकी विद्वत्ता से प्रभावित होकर इन्हें ‘हिन्दी शब्द-सागर’ के सम्पादन-कार्य में सहयोग के लिए श्यामसुन्दर दास जी द्वारा काशी नागरी प्रचारिणी सभा में ससम्मान बुलवाया गया। 19 वर्ष तक काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिका’ का सम्पादन भी किया।
कुछ समय पश्चात् इनकी नियुक्ति काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के प्राध्यापक के रूप में हो गयी और श्यामसुन्दर दास जी के अवकाश प्राप्त करने के बाद ये हिन्दी विभाग के अध्यक्ष भी हो गये। शुक्ल जी ने लेखन का शुभारम्भ कविता से किया था। नाटक लेखन की ओर भी इनकी रुचि रही, पर इनकी प्रखर बुद्धि इनको निबन्ध लेखन एवं आलोचना की ओर ले गई। निबन्ध लेखन और आलोचना के क्षेत्र में इनका सर्वोपरि स्थान आज तक बना हुआ है। जीवन के अन्तिम समय तक साहित्य साधना करने वाले शुक्ल जी का निधन के सन् 1941 में हुआ।
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की रचनाएँ-
शुक्ल जी एक प्रसिद्ध निबन्धकार, निष्पक्ष आलोचक, श्रेष्ठ इतिहासकार और सफल सम्पादक थे। इनकी रचनाओं का विवरण निम्नवत् है
निबन्ध- संग्रह-पंचपात्र’,’ पद्मवन’,’ तीर्थरेणु’,’ प्रबन्ध-पारिजात’,’ कुछ बिखरे पन्ने’,’ मकरन्द बिन्दु’,’ यात्री’,’ तुम्हारे लिए’,’ तीर्थ-सलिल’ आदि।
काव्य- संग्रह-शतदल ‘और’ अश्रुदल’।
कहानी- संग्रह- ‘झलमला’ और ‘अञ्जलि’ ।
आलोचना-‘हिन्दी-साहित्य विमर्श’ , ‘विश्व-साहित्य’ , हिन्दी उपन्यास साहित्य” , ‘हिन्दी कहानी साहित्य’ , ‘साहित्य शिक्षा’ आदि।
अनूदित रचनाएं- जर्मनी के मॉरिस मेटरलिंक के दो नाटकों का प्रायश्चित्त ‘और’ उन्मुक्ति का बन्धन’ शीर्षक से अनुवाद।
सम्पादन- सरस्वती ‘और’ छाया’।
साहित्य में स्थान
हिन्दी निबन्ध को नया आयाम देकर उसे ठोस धरातल पर प्रतिष्ठित करने वाले शुक्ल जी हिन्दी-साहित्य के मूर्धन्य आलोचक, श्रेष्ठ निबन्धकार, निष्पक्ष इतिहासकार, महान् शैलीकार एवं युग-प्रवर्तक साहित्यकार थे। ये हृदय से कवि, मस्तिष्क से आलोचक और जीवन से अध्यापक थे। हिन्दी-साहित्य में इनका मूर्धन्य स्थान है। इनकी विलक्षण प्रतिभा के कारण ही इनके समकालीन हिन्दी गद्य के काल को ‘शुक्ल युग’ के नाम से सम्बोधित किया जाता है।
Conclusion – इस आर्टिकल में आपने आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का जीवन परिचय पढ़ा । हमें उम्मीद है कि, यह आर्टिकल आपके लिए उपयोगी रहा होगा। हिन्दी विषय से सम्बंधित पोस्ट पढ़ते रहने के लिए हमें टेलीग्राम पर फॉलो करे।