नमस्ते दोस्तों, इस आर्टिकल में हम डॉ राजेंद्र प्रसाद का जीवन परिचय पढेंगे। इससे पहले हम सूरदास, तुलसीदास और रसखान का जीवन परिचय पढ़ चुके हैं।
डॉ राजेंद्र प्रसाद का संक्षिप्त जीवन परिचय
डॉ राजेन्द्र प्रसाद जीवन परिचय | |
पूरा नाम | डॉ राजेन्द्र प्रसाद |
धर्म | हिन्दू |
जन्म | 3 दिसम्बर 1884 |
जन्म स्थान | बिहार |
माता-पिता | कमलेश्वरी देवी, महादेव सहाय |
विवाह | राजवंशी देवी (1896) |
मृत्यु | 28 फ़रवरी, 1963 पटना बिहार |
डॉ राजेंद्र प्रसाद का जीवन परिचय
भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद का जन्म 1884 ई. में बिहार राज्य के जीरादेई नामक स्थान पर हुआ था जो छपरा जिले में स्थित है। इनके पिता का नाम महादेव सहाय तथा माता का नाम कमलेश्वरी देवी था। इनका परिवार गाँव का संपन्न और प्रतिष्ठित कृषक परिवारों में से एक था।
अपनी प्रारंभिक शिखा जीरादेई में पूरी करने के बाद यह अपने भाई महेंद्र प्रताप के साथ पटना के टी के घोष अकैडमी में जाने लगे जिस के बाद इनका दाखिला कलकत्ता विश्वविद्यालय में हुआ। 1907 में इकोनॉमिक्स में एम् ए करने के बाद मुजफ्फरपुर के एक कालेज में अध्यापन का कार्य करने लगे।
1911 से इन्होने पटना और कोलकता में वकालत का कार्य किया, जिसके बाद इनका झुकाव राष्ट्र सेवा की तरफ़ बढ़ने लगा। 1917 में हुए चम्पारण के आन्दोलन में हिस्सा लेने के बाद गांधी जी के विचारो से प्रभावित होकर इन्होने वकालत छोड़ दी और पूर्ण रूप से स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़ें।
इन्होने विदेशों में भी भारत का पक्ष रखा और कई बार जेल भी गएँ। तीन बार यह भारतीय कांग्रेस के सभापति चुने गएँ। 1952 में यह स्वतंत्र भारत गणराज्य के पहले राष्ट्रपति बने और पंडित जवाहरलाल नेहरु की कैबिनेट में खाद्य व कृषि विभाग का कार्य भार भी सम्भाला।
1962 में राष्ट्रपति के पद से मुक्त होने के बाद इन्हें भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया। जीवनपर्यत्न हिन्दी और हिंदुस्तान की सेवा करने वाले इस महान व्यक्तित्व का देहावसान 28 फरवरी, 1963 में हो गया।
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डॉ राजेंद्र प्रसाद की रचनाएँ–
डॉ राजेंद्र प्रसाद जी की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं।
1. चंपारण में महात्मा गांधी
2. बापू के क़दमों में
3. मेरी आत्मकथा
4. मेरी यूरोप यात्रा
5. शिक्षा और संस्कृति
6. भारतीय शिक्षा
7. गांधीजी की देन
8. संस्कृत का अध्धयन
9. खादी का अर्थशास्त्र
10. साहित्य
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की भाषा शैली–
भाषा-शैली डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की भाषा सरल, सुबोध और व्यावहारिक है। इनके निबन्धों में संस्कृत, उर्दू, अंग्रेजी, बिहारी शब्दों का प्रयोग हुआ है। इसके अतिरिक्त जगह-जगह ग्रामीण कहावतों और शब्दों का भी प्रयोग हुआ है। इन्होंने भावानुरूप छोटे-बड़े वाक्यों का प्रयोग किया है। इनकी भाषा में बनावटीपन नहीं है। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की शैली भी उनकी भाषा की तरह ही आडम्बर रहित है। इसमें इन्होंने आवश्यकतानुसार ही छोटे-बड़े वाक्यों का प्रयोग किया है। इनकी शैली के मुख्य रूप से दो रूप प्राप्त होते हैं-साहित्यिक शैली और भाषण शैली।
हिन्दी साहित्य में स्थान-
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ‘सरल-सहज भाषा और गहन विचारक’ के रूप में सदैव स्मरण किए जाएंगे। यही सादगी इनके साहित्य में भी दृष्टिगोचर होती है। हिन्दी की आत्मकथा साहित्य में सम्बन्धित सुप्रसिद्ध पुस्तक ‘मेरी आत्मकथा’ का विशेष स्थान है। ये हिन्दी के अनन्य सेवक और उत्साही प्रचारक थे, जिन्होंने हिन्दी की जीवनपर्यन्त सेवा की। इनकी सेवाओं का हिन्दी जगत् सदैव ऋणी रहेगा।
डॉ राजेंद्र प्रसाद की सबसे प्रसिद्ध पुस्तक
आधुनिक भारत के मनीषी, तत्त्वज्ञानियों और चिंतकों में देशरत्न राजेंद्र प्रसाद का प्रथम स्थान है। पर दु:खकातरता, त्याग और सेवा- भाव उनके स्वाभाविक गुण थे। भारत की एकता और अंता बनाए रखना उनके लिए अत्यंत महत्त्व की बात थी। सन् 1940 के लाहौर अधिवेशन में मुसलिम लीग ने जब देश के विभाजन का प्रस्ताव पारित किया तो यह गंभीर चिंता और चर्चा का विषय बन गया। इस पर राजेंद्र बाबू ने खंडित भारत नाम से एक पुस्तक लिखी ।
Conclusion – इस आर्टिकल में आपने Dr Rarjendra Prasad डॉ राजेंद्र प्रसाद का जीवन परिचय पढ़ा । हमें उम्मीद है कि, यह आर्टिकल आपके लिए उपयोगी रहा होगा। हिन्दी विषय से सम्बंधित पोस्ट पढ़ते रहने के लिए हमें टेलीग्राम पर फॉलो करे।