इस पोस्ट में शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ जी द्वारा लिखित वरदान मांगूंगा नहीं नामक कविता की पंक्तियों के साथ-साथ उसका भावार्थ भी दिया गया है।
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वरदान मांगूंगा नहीं
यह हार एक विराम है,
जीवन महासंग्राम है,
तिल-तिल मिटूँगा पर दया की भीख मैं लूँगा नहीं।
वरदान मांगूंगा नहीं॥
स्मृति सुखद प्रहरों के लिए,
अपने खण्डहरों के लिए,
यह जान लो मैं विश्व की सम्पत्ति चाहूँगा नहीं।
वरदान …
क्या हार में क्या जीत में
किंचित नहीं भयभीत मैं
संघर्ष पथ पर जो मिले यह भी सही वह भी सही।
वरदान …
लघुता न अब मेरी छुओ
तुम हो महान बने रहो
अपने हृदय की वेदना मैं व्यर्थ त्यागूँगा नहीं।
वरदान …
चाहे हृदय को ताप दो
चाहे मुझे अभिशाप दो
कुछ भी करो कर्त्तव्य पथ से किन्तु भागूँगा नहीं।
वरदान …
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’
भावार्थ-
प्रस्तुत कविता में कवि कहते हैं कि जीवन युद्ध की तरह है और जीवन के इस महा-संग्राम में किसी से भीख मांगने की अपेक्षा वह मरना पसंद करेंगे। अर्थात वरदान मांगने के बजाय अपने स्वाभिमान के बल पर जीवन रुपी महासंग्राम का सामना करना पसंद करेंगे।
आगे कवि कहते हैं कि अगर मुझे मेरे ख़ुशी के पल और दुःख की यादों के बदले विश्व भर की धन सम्पदा भी मिले तो भी मैं धन की इच्छा नहीं रखता, मेरे लिए मेरा स्वाभिमान ही धरोहर है। कवि कहते हैं कि हार और जीत में क्या रखा है। जीवन के सघर्ष पथ पर हार-जीत तो लगे रहते हैं। किन्तु हार से डरकर अपना कर्तव्य पथ नहीं त्यागना चाहिए।
कभी कहता है कि कोई भी अब मेरी कमियों आकलन न करें, वह स्वयं ही महान बना रहे। मेरे हृदय की वेदना ही मेरी संपत्ति और मेरी धरोहर है। मैं उसे किसी भी क़ीमत पर छोड़ नहीं सकता। चाहे कोई मेरे हृदय को कष्ट दे या मुझे अभिशाप दे। परंतु मैं अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटूंगा तथा मैं ईश्वर से वरदान नहीं मांगूंगा।
Conclusion: इस आर्टिकल में आपने शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ जी द्वारा लिखित रचना ‘वरदान मांगूंगा नही‘ कविता की पंक्तियों के साथ-साथ उसके भावार्थ भी पढ़े। हिन्दी व्याकरण या हिन्दी काव्य से सम्बंधित अन्य आर्टिकल पढने के लिए हमें सब्सक्राइब करें, अथवा टेलीग्राम पर फॉलो करें।