प्रिय पाठक! स्वागत है आपका the eNotes के एक नए आर्टिकल में, इस आर्टिकल में हम सूरदास का जीवन परिचय | Surdas ka Jivan Parichay पढेंगे, इनसे पहले हमने तुलसीदास और रसखान का जीवन परिचय पढ़ चुके हैं, तो चलिए विस्तार से पढ़ते हैं सूरदास का जीवन परिचय (Surdas ka Jivan Parichay) –

सूरदास का जीवन परिचय (संक्षिप्त परिचय)
कवि का नाम | : | सूरदास |
उपनाम | : | मदन-मोहन |
पिता का नाम | : | रामदास |
माता का नाम | : | जमुनादास |
जन्म-स्थान | : | रुनकता या सीही |
जन्म | : | सन् 1478 ई. |
मृत्यु | : | सन् 1583 ई. |
गुरु | : | महाप्रभु बल्लभाचार्य |
प्रमुख रचनाएँ | : | 1. सूरसागर |
: | 2. सूर-सारावली | |
: | 3. साहित्य लहरी | |
भाषा | : | ब्रज भाषा |
जन्म काल | : | भक्तिकाल |
सूरदास का जीवन परिचय | Surdas ka Jivan Parichayजीवन परिचय-सूरदास का जन्म 1478 ई. में सीही नामक ग्राम में हुआ था, लेकिन कुछ विद्वानों का मानना है कि सूरदास का जन्म मथुरा-आगरा मार्ग पर स्थित रुनकता नामक ग्राम में हुआ था, सूरदास का जन्म निर्धन सारस्वत ब्राह्मण पं0 रामदास के यहाँ हुआ था। सूरदास के पिता गायक थे। सूरदास के माता का नाम जमुनादास था।
बचपन से ही सूरदास की रूचि कृष्णभक्ति में थी, कृष्ण के भक्त होने के कारण उन्हें मदन-मोहन नाम से भी जाना जाता है, सूरदास ने भी अपने कई दोहों में ख़ुद को मदन-मोहन कहा है। सूरदास नदी किनारे बैठ कर पद लिखते और उसका गायन करते थे और कृष्ण भक्ति के बारे में लोगों को बताते थे।
सूरदास का जीवन परिचय – शिक्षा
इनके भक्ति का एक पद सुनकर पुष्टिमार्ग के संस्थापक महाप्रभु बल्लभाचार्य ने इन्हें अपना शिष्य बना लिया। बल्लभाचार्य के पुत्र बिट्ठलनाथ ने ‘अष्टछाप’ नाम से कृष्णभक्त कवियों के लिए संगठन तैयार किया जिसमे यह सबसे श्रेष्ठ कवि थे। इनकी मृत्यु सन् 1583 ई. में परसौली नामक ग्राम में हुआ था।
सूरदास ने अपने जीवन काल में “सूरसागर, सूर-सारावली, साहित्य लहरी” नामक रचनाएँ की हैं। हिन्दी साहित्य में सूरदास को सूर्य की उपाधि दी गयी है। उनके इस उपाधि पर एक दोहा प्रसिद्ध है।
सूर सूर तुलसी ससी, उडुगन केशवदास।
अब के कवि खद्योत सम, जहँ-तहँ करत प्रकाश॥
सूरदास की प्रमुख रचनाएँ [Surdas ki Pramukh Rachnaye]
नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित हस्तलिखित पुस्तकों की विवरण तालिका में सूरदास के 16 ग्रन्थों का उल्लेख किया गया है। इनमें सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य लहरी, नल-दमयन्ती, ब्याहलो के अतिरिक्त सूरसागर सार, प्राणप्यारी, गोवर्धन लीला, दशमस्कंध टीका, भागवत्, सूरपचीसी, नागलीला, आदि ग्रन्थ सम्मिलित हैं। वैसे तो इनकी केवल तीन रचनाओं के प्रमाण है, बाकि किसी का प्रमाण नहीं है।
- सूरसागर
- सूरसारावली
- साहित्य लहरी
सूरसागर [Sursagar]
श्रीमद्-भागवत के आधार पर ‘सूरसागर‘ में सवा लाख पद थे। किन्तु वर्तमान संस्करणों में लगभग सात हज़ार पद ही उपलब्ध बताये जाते हैं, ‘सूरसागर’ में श्री कृष्ण की बाल-लीलाओं, गोपी-प्रेम, उद्धव-गोपी संवाद और गोपी-विरह का बड़ा सरस वर्णन है।
सूरसागर के दो प्रसंग “कृष्ण की बाल-लीला’और” भ्रमर-गीतसार’ अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं। सूरसागर की सराहना डॉक्टर हजारी प्रसाद ने भी अपनी कई रचनाओ में की है। सम्पूर्ण ‘सूरसागर’ एक गीतिकाव्य है, इसके पद तन्मयता से गए जाते हैं, यही ग्रन्थ इनकी कृति का स्तम्भ है।
सूर-सारावली [Sur-Sarawali]
सूर-सारावली में 1107 छन्द हैं, इसे ‘सूरसागर’ का सारभाग कहा जाता है, यह सम्पूर्ण ग्रन्थ एक “वृहद् होली” गीत के रूप में रचित है। इसकी टेक है-
खेलत यह विधि हरि होरी हो,
हरि होरी हो वेद विदित यह बात।
इसका रचना-काल संवत् 1602 वि0 निश्चित किया गया है। सूरसारावली में कवि ने क्रिष्ण विषयक जिन कथात्मक और सेवा परक पदो का गान किया उन्ही के सार रूप मैं उन्होने सारावली की रचना की।
साहित्य लहरी [Sahity Lahari]
साहित्यलहरी 118 पदों की एक लघु रचना है। इसके अन्तिम पद में सूरदास का वंशवृक्ष दिया है, जिसके अनुसार इनका नाम ‘सूरजदास’ है और वे चन्दबरदायी के वंशज सिद्ध होते हैं। अब इसे प्रक्षिप्त अंश माना गया है ओर शेष रचना पूर्ण प्रामाणिक मानी गई है।
इसमें रस, अलंकार और नायिका-भेद का प्रतिपादन किया गया है। इस कृति का रचना-काल स्वयं कवि ने दे दिया है जिससे यह 1607 विक्रमी संवत् में रचित सिद्ध होती है। रस की दृष्टि से यह ग्रन्थ विशुद्ध शृंगार की कोटि में आता है।
क्या सूरदास जन्म से अंधे थे? [Kya Surdas Janm se Andhe the]
सूरदास के जन्मांध होने के विषय में अभी मतभेद है। सूरदास ने तो आपने आप को जन्मांध बताया है। लेकिन जिस तरह से उन्होंने श्री कृष्ण की बाल लीला और शृंगार रूपी राधा और गोपियों का सजीव वर्णन किया है, आँखों से साक्षात देखे बगैर नहीं हो सकता, विद्वानों का मानना है कि वह जन्मांध नहीं थे, हो सकता है कि उन्होंने आत्मग्लानीवश, लाक्षणिक रूप से अथवा किसी और कारण अपने आप को जन्मांध बताया हो।
अंधे होने की कहानी [Surdas ke Andhe Hone Ki kahani]
उनके अंधे होने की एक कहानी भी प्रचलित है। कहानी कुछ इस तरह है कि सूरदास (मदन मोहन) एक बहुत ही सुन्दर और तेज बुद्धि के नवयुवक थे वह हर दिन नदी के किनारे जा कर बैठ जाता और गीत लिखता, एक दिन एक ऐसा वाकया हुआ जिसने उसका मन को मोह लिया।
हुआ यूँ की एक सुन्दर नवयुवती नदी किनारे कपड़े धो रही थी, मदन मोहन का ध्यान उसकी तरफ़ चला गया। उस युवती ने मदन मोहन को ऐसा आकर्षित किया की वह कविता लिखना भूल गए और पुरा ध्यान लगा कर उस युवती को देखने लगे। उनको ऐसा लगा मानो यमुना किनारे राधिका स्नान कर के बैठी हो।
उस नवयुवती ने भी मदन मोहन की तरफ़ देखा और उनके पास आकर बोली आप मदन मोहन जी हो ना? तो वह बोले, हाँ मैं मदन मोहन हूँ। कविताये लिखता हूँ तथा गाता हूँ आपको देखा तो रुक गया। नवयुवती ने पूछा क्यों? तो वह बोले आप हो ही इतनी सुन्दर। यह सिलसिला कई दिनों तक चला।
उस सुन्दर युवती का चेहरा उनके सामने से नहीं जा रहा था, और एक दिन वह मंदिर में बैठे थे तभी वह एक शादीशुदा स्त्री आई। मदन मोहन उनके पीछे-पीछे चल दिए। जब वह उसके घर पहुँचे तो उसके पति ने दरवाज़ा खोला तथा पूरे आदर समानं के साथ उन्हें अंदर बिठाया।
फिर मदन मोहन ने दो जलती हुए सिलाया मांगी तथा उसे अपनी आँख में डाल दी। इस तरह मदन मोहन बने महान कवि सूरदास।

सूरदास के १० प्रसिद्ध दोहे [Surdas ke 10 Prasiddh Dohe]
१. ” चरण कमल बंदो हरी राइ।
जाकी कृपा पंगु गिरी लांघें अँधे को सब कुछ दरसाई॥
बहिरो सुनै मूक पुनि बोले रंक चले सर छत्र धराई।
सूरदास स्वामी करुणामय बार-बार बंदौ तेहि पाई॥”
खंजन नैन रूप मदमाते।
२. ” अतिशय चारु चपल अनियारे,
पल पिंजरा न समाते॥
चलि-चलि जात निकट स्रवनन के,
उलट-पुलट ताटंक फँदाते।
” सूरदास’ अंजन गुन अटके,
नतरु अबहिं उड़ जाते॥”
३. ” मैया मोहि दाऊ बहुत खिझायौ,
मोसौं कहत मोल कौ लीन्हौ, तू जसुमति कब जायौ।
कहा करौं इहि के मारें खेलन हौं नहि जात,
पुनि-पुनि कहत कौन है माता, को है तेरौ तात।
गोरे नन्द जसोदा गोरी तू कत स्यामल गात,
चुटकी दै-दै ग्वाल नचावत हँसत-सबै मुसकात।
तू मोहीं को मारन सीखी दाउहिं कबहुँ न खीझै,
मोहन मुख रिस की ये बातैं, जसुमति सुनि-सुनि रीझै।
सुनहु कान्ह बलभद्र चबाई, जनमत ही कौ धूत,
सूर स्याम मौहिं गोधन की सौं, हौं माता तो पूत। ”

४. ” अरु हलधर सों भैया कहन लागे मोहन मैया मैया।
नंद महर सों बाबा अरु हलधर सों भैया॥
ऊंचा चढी-चढी कहती जशोदा लै-लै नाम कन्हैया।
दुरी खेलन जनि जाहू लाला रे! मारैगी काहू की गैया॥
गोपी ग्वाल करत कौतुहल घर-घर बजति बधैया।
सूरदास प्रभु तुम्हरे दरस कों चरननि की बलि जैया॥”
५. ” मैया मोहि मैं नहीं माखन खायौ।
भोर भयो गैयन के पाछे, मधुबन मोहि पठायो।
चार पहर बंसीबट भटक्यो, साँझ परे घर आयो॥
मैं बालक बहियन को छोटो, छीको किहि बिधि पायो।
ग्वाल बाल सब बैर पड़े है, बरबस मुख लपटायो॥
तू जननी मन की अति भोरी इनके कहें पतिआयो।
जिय तेरे कछु भेद उपजि है, जानि परायो जायो॥
यह लै अपनी लकुटी कमरिया, बहुतहिं नाच नचायों।
सूरदास तब बिहँसि जसोदा लै उर कंठ लगायो॥”
सूरदास के दोहे [Surdas Ke Dohe]
६. ” मैया मोहि कबहुँ बढ़ेगी चोटी।
किती बेर मोहि दूध पियत भइ यह अजहू है छोटी॥
तू तो कहति बल की बेनी ज्यों ह्वै है लांबी मोटी।
काढ़त गुहत न्हावावत जैहै नागिन-सी भुई लोटी॥
काचो दूध पियावति पचि-पचि देति न माखन रोटी।
सूरदास त्रिभुवन मनमोहन हरि हलधर की जोटी॥”
७. ” जसोदा हरि पालनै झुलावै।
हलरावै दुलरावै मल्हावै जोई सोई कछु गावै॥
मेरे लाल को आउ निंदरिया कहे न आनि सुवावै।
तू काहै नहि बेगहि आवै तोको कान्ह बुलावै॥
कबहुँ पलक हरि मुंदी लेत है कबहु अधर फरकावै।
सोवत जानि मौन ह्वै कै रहि करि-करि सैन बतावै॥
इही अंतर अकुलाई उठे हरि जसुमति मधुरैं गावै।
जो सुख सुर अमर मुनि दुर्लभ सो नंद भामिनि पावै॥”
८. ” बुझत स्याम कौन तू गोरी।
कहाँ रहति काकी है बेटी देखी नहीं कहूँ ब्रज खोरी॥
काहे कों हम ब्रजतन आवतिं खेलति रहहिं आपनी पौरी।
सुनत रहति स्त्रवननि नंद ढोटा करत फिरत माखन दधि चोरी॥
तुम्हरो कहा चोरी हम लैहैं खेलन चलौ संग मिलि जोरी।
सूरदास प्रभु रसिक सिरोमनि बातनि भूरइ राधिका भोरी॥”
९. ” निरगुन कौन देस को वासी।
मधुकर किह समुझाई सौह दै, बूझति सांची न हांसी॥
को है जनक, कौन है जननि, कौन नारि कौन दासी।
कैसे बरन भेष है कैसो, किहं रस में अभिलासी॥
पावैगो पुनि कियौ आपनो, जा रे करेगी गांसी।
सुनत मौन हवै रह्यौ बावरों, सुर सबै मति नासी॥”
१०. ” जो तुम सुनहु जसोदा गोरी।
नंदनंदन मेरे मंदीर में आजू करन गए चोरी॥
हों भइ जाइ अचानक ठाढ़ी कह्यो भवन में कोरी।
रहे छपाइ सकुचि रंचक ह्वै भई सहज मति भोरी॥
मोहि भयो माखन पछितावो रीती देखि कमोरी।
जब गहि बांह कुलाहल किनी तब गहि चरन निहोरी॥
लागे लें नैन जल भरि-भरि तब मैं कानि न तोरी।
सूरदास प्रभु देत दिनहिं दिन ऐसियै लरिक सलोरी॥”
Surdas Ka Jivan Parichay Video Tutorial
आपने क्या सिखा –
इस आर्टिकल में आपने सूरदास का जीवन परिचय | Surdas ka Jivan Parichay पढ़ा, हमें उम्मीद है की Surdas ka Jivan Parichay आपके लिए आवश्य फायदेमंद रहा होगा, इस लेख के बारे में अपना विचार कमेंट करें।
detail jankari hai
कवि का उच्चारण गलत दिया है।
Thanks Ankur Moudgil
Thanks for your valuable feedback.
Now its right.
बहुत अच्छे से समझाया है
Thanks Yogesh.
Minakshi bhagat