किसी भी भाषा को समझने के लिए ज़रूरी होता है कि सबसे पहले हम उस भाषा के मात्रा को समझें, क्योंकि मात्रा के बिना कोई भी सार्थक शब्द या वाक्य नहीं बन सकता। इसलिए आज हम पढेंगे कि मात्रा किसे कहते हैं (मात्रा की परिभाषा) और साथ ही मात्रा का प्रयोग करना सीखेंगे।
मात्रा किसे कहते हैं?
जैसा की हम सभी जानते हैं की, भाषा की सबसे छोटी इकाई को वर्ण कहते हैं और किसी वर्ण के उच्चारण में जो समय लगता है, उसे मात्रा कहते हैं। हम जब भी कोई वर्ण बोलते हैं तो वर्ण के बोलने के बाद भी हम उसके उच्चारण में कुछ समय लेते हैं और जो बाद में समय लगता है वही मात्रा होता है। जैसे- क + ा = का (यहाँ पर ‘का’ का उच्चारण करने में क के बाद का लगा समय मात्रा है।)
मात्रा की परिभाषा
जब स्वर, व्यंजन से मिलते है तो उनका स्वरुप बदल जाता है, इस बदले हुए स्वरुप को मात्रा कहते हैं।
मात्रा, स्वर का ही रूप होता है और स्वरों की सहायता के बिना व्यंजनों नहीं बोला जा सकता है। वैसे तो स्वरों की संख्या 11 मानी गयी है, लेकिन मात्राएँ सिर्फ़ 10 स्वर की होती हैं, ‘अ’ अक्षर की कोई मात्रा नहीं होती है।
मात्रा के उदाहरण
स्वर | मात्रा | उदाहरण |
---|---|---|
अ | कोई मात्रा नही | कोई मात्रा नही |
आ | ा | क + ा = का |
इ | ि | क + ि = कि |
ई | ी | क + ी = की |
उ | ु | क + ु = कु |
ऊ | ू | क + ू = कू |
ऋ | ृ | क + ृ = कृ |
ए | े | क + े = के |
ऐ | ै | क + ै = कै |
ओ | ो | क + ो = को |
औ | ौ | क + ौ = कौ |
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